लबों से लफ्ज़ झड़े, आंख से नमी निकले,ग़ज़ल तहज़ीब हाफी जी।
लबों से लफ्ज़ झड़े, आंख से नमी निकले, किसी तरह तो मेरे दिल से गमी निकले। मै चाहता हूं परिंदे रिहा किये जाएं, मै चाहता हूं तेरे होंठों से हसीं निकले। मैं चाहता हूं कोई(तुम) मुझसे बात करता रहे, मै चाहता हूं मेरे अंदर की खामोशी निकले। मै चाहता हूं तेरे इश्क़ में अजीब हो कुछ, मै चाहता हूं चिरागों से दिन निकले। मै चाहता हूं तुझे मुझसे इश्क़ हो जाए, मै चाहता हूं कि मेरी बातों का असर निकले। तहज़ीब हफी।