तेरा चुप रहना मेरे ज़ेहन में क्या बैठ गया, by tehzeeb hafi

तेरा चुप रहना मेरे ज़ेहन में क्या बैठ गया,
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया !

यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ,
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया !

इतना मीठा था वो ग़ुस्से भरा लहजा मत पूछ,
उस ने जिस को भी जाने का कहा बैठ गया !

अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं,
चीख़ती तुम रही और मेरा गला बैठ गया !

उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने,
इस पे क्या लड़ना फलाँ मेरी जगह बैठ गया !

बात दरियाओं की,सूरज की,न तेरी है यहाँ ,
दो क़दम जो भी मेंरे साथ चला बैठ गया !

बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस,
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया !!

Comments

Popular posts from this blog

Use kisi se pyar tha aur wo mai nahi tha Ali Zaryoun with durgesh mixed poetry.

लबों से लफ्ज़ झड़े, आंख से नमी निकले,ग़ज़ल तहज़ीब हाफी जी।