हाँ तुम ज़रूरी हो पर मेरा आत्म-सम्मान भी ज़रूरी था ।।
ज़िंदगी में ज़िद होनी बहुत ज़रूरी है,
पर कभी - कभी किसी इंसान को पा लेने की ज़िद त्याग देनी चाहिए,तब जब उसे आप नहीं चाहिए, क्यूकी वहाँ बार - बार हर बार आपकी इज्जत उछाली जाएगी आपके विश्वास आपके आत्मसम्मान को ठगा जाएगा,
और बार - बार हर बार कुछ नये तरीक़े खोजे जायेगे आपसे अलग होने के ।।
उस situation में फिर ख़ुद को वहाँ से अलग कर लेना चाहिए ।
कभी - कभी किसी का साथ देने की ज़िद, उसको अकेला ना छोड़ने की ज़िद, उसके प्यार से खुद को मुक्त ना करने की ज़िद, उसके अपनेपन से ख़ुद को बंधे रखने की ज़िद, आपको बेशर्म होने का तमग़ा दे जाता है, आपको बेशर्म मान के आपके self_respect को आपके आत्म-सम्मान को आपके स्वाभिमान को बार बार निचोड़ा जाता है ।
कुछ यू ही ये ज़िद कभी - कभी छोड़ देनी चाहिये और ख़ुद को इक नयी ज़िद में बांध लेना चाहिए, की बस अब और नहीं, की हाँ तुम ज़रूरी हो पर मेरा आत्म-सम्मान भी ज़रूरी था, क्यूकी कभी मैंने तुम्हारे आत्म-सम्मान को ठेस ना पहुँचे इसका पूरा ख़्याल रखा था,
की हा तुम ज़रूरी थे, ज़रूरी हो, ज़रूरी रहोगे पर हा अब मैं ये तुम्हें कह कर एहसास नहीं दिलाऊँगा,
कि हाँ, इक ज़िद ख़ुद से और करिए
की अब किसी और के क़रीब कभीं ना हो पाने की, तुमसे तुम्हारे बिना ही मुहब्बत निभाने की ।।
#ख़ैर
❤️🙏🏻
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