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Showing posts from November, 2025

समय के साथ लगाव व प्रेम का प्रभाव कम हो जाना | Durgesh Singh Lucknow.

सुनो,सुनो ना.... क्या तुम्हें अब भी याद है वो प्रेम का आरंभिक दौर, घंटों बाते करना हम दोनों का  | एक कॉल, इक टेक्स्ट की प्रतीक्षा में सारा ध्यान फ़ोन में लगे रहना | स्मृतियो में रहना मुस्करा देना, जागते हुए कल्पनायें बुनना, साथ हँसना खिलखिलाना, कभी साथ - साथ रो देना, फिर धीरे - धीरे बाते कम होती गयी | फिर इक वक्त के बाद मात्र एक औपचारिकता ही रह गई थी, हमारे रिश्ते के बीच, हमारे प्रेम के बीच | मानता हूँ समय के साथ लगाव कम हो जाता है,  पर प्रेम तो गहरा होता है ना, पुराना होने के साथ ? सुनो पुनः सब पुनः से शुरू कर सकते है क्या ?? अब भले ही बाते कम करो पर अथाह प्रेम हो,  वही प्रथम बार की तरह इक दूसरे का साथ कभी उबाऊ ना लगे, लगे जैसे प्रेम अनंत है | साथ भी हो हमारा उम्र के अंतिम पड़ाव की तरह, कभी भी रिश्तों में विराम चाहिए हो तो हम इक दूसरे की गलती ना बताते फिरे | प्रेम का प्रभाव वैसा ही रहे, बिलकुल नवीन अद्भुत अप्रतिम असाधारण अथाह अनंत ll

जो गया वो कभी वापस नहीं आएगा Durgesh Singh Lucknow वाले

 तुम्हारा इक सबब मुझपे हमेशा रहेगा जो गया वो कभी वापस नहीं आएगा, तुम्हें बेवजह ही अपनी ज़िंदगी मान लिया था कुछ ज़्यादा ही तुम्हें सर पे चढ़ा लिया था,  पागल हूँ वक़्त ज़ाया करता रहता हूँ, तुम्हें मानने मेंमुझे लगता था, मै जी नहीं पाऊँगा तुम्हारे बिना, पर देखो साँसे अब भी चल रही है, वो बात अलग है तुम्हारी याद हर पल आ ही जाती है, और यादों को रोक भी कौन सकता है | मै इतनी ख़ुशी से तुम्हें अपनी हर बात बताना चाहता रहता हूँ पर तुम्हारा हाँ हूँ करके इग्नोर कर देना अब बेज्जती सी लगती है | हँसी ग़ायब है तुम्हारे बिना अब वो भी नहीं आती तुम्हारे बिना ना जाने क्यूँ मै तुमसे इतनी उमीदे लगा बैठता हूँ, और ग़लत भी क्या है उमीदे लगाने में,  उमीद भी तो सिर्फ़ थोड़ी सी प्यार जताने और तुमसे अपनेपन की है ना प्यार तो दूर की बात है | अब शायद प्यार से बात भी नहीं करती प्यार की बात तो दूर, कद्र ही कर लेती,  मेरी ना सही तो मेरे प्यार की ही प्यार की भी ना सही तो उस एहसास की जिसमें मै दुनिया का सबसे परफेक्ट बंदा था, जिसने तुम्हारे लिए प्यार के अलग हे मायने सेट किए थे, ख़ैर सब वक़्त वक़्त की बात ह...

नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम पोएट्री जॉन एलिया साहब ।।

 नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम, बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम । ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी, कोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम । ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैं, वफ़ा-दारी का दावा क्यूँ करें हम । हमारी ही तमन्ना क्यूँ करो तुम, तुम्हारी ही तमन्ना क्यूँ करें हम । किया था अह्द जब लम्हों में हम ने, तो सारी उम्र ईफ़ा क्यूँ करें हम । उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीज़ें, फ़क़त कमरों में टहला क्यों करें हम । नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी, तो फिर दुनिया की परवाह क्यूँ करें हम ।।