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समय के साथ लगाव व प्रेम का प्रभाव कम हो जाना | Durgesh Singh Lucknow.

सुनो,सुनो ना.... क्या तुम्हें अब भी याद है वो प्रेम का आरंभिक दौर, घंटों बाते करना हम दोनों का  | एक कॉल, इक टेक्स्ट की प्रतीक्षा में सारा ध्यान फ़ोन में लगे रहना | स्मृतियो में रहना मुस्करा देना, जागते हुए कल्पनायें बुनना, साथ हँसना खिलखिलाना, कभी साथ - साथ रो देना, फिर धीरे - धीरे बाते कम होती गयी | फिर इक वक्त के बाद मात्र एक औपचारिकता ही रह गई थी, हमारे रिश्ते के बीच, हमारे प्रेम के बीच | मानता हूँ समय के साथ लगाव कम हो जाता है,  पर प्रेम तो गहरा होता है ना, पुराना होने के साथ ? सुनो पुनः सब पुनः से शुरू कर सकते है क्या ?? अब भले ही बाते कम करो पर अथाह प्रेम हो,  वही प्रथम बार की तरह इक दूसरे का साथ कभी उबाऊ ना लगे, लगे जैसे प्रेम अनंत है | साथ भी हो हमारा उम्र के अंतिम पड़ाव की तरह, कभी भी रिश्तों में विराम चाहिए हो तो हम इक दूसरे की गलती ना बताते फिरे | प्रेम का प्रभाव वैसा ही रहे, बिलकुल नवीन अद्भुत अप्रतिम असाधारण अथाह अनंत ll

जो गया वो कभी वापस नहीं आएगा Durgesh Singh Lucknow वाले

 तुम्हारा इक सबब मुझपे हमेशा रहेगा जो गया वो कभी वापस नहीं आएगा, तुम्हें बेवजह ही अपनी ज़िंदगी मान लिया था कुछ ज़्यादा ही तुम्हें सर पे चढ़ा लिया था,  पागल हूँ वक़्त ज़ाया करता रहता हूँ, तुम्हें मानने मेंमुझे लगता था, मै जी नहीं पाऊँगा तुम्हारे बिना, पर देखो साँसे अब भी चल रही है, वो बात अलग है तुम्हारी याद हर पल आ ही जाती है, और यादों को रोक भी कौन सकता है | मै इतनी ख़ुशी से तुम्हें अपनी हर बात बताना चाहता रहता हूँ पर तुम्हारा हाँ हूँ करके इग्नोर कर देना अब बेज्जती सी लगती है | हँसी ग़ायब है तुम्हारे बिना अब वो भी नहीं आती तुम्हारे बिना ना जाने क्यूँ मै तुमसे इतनी उमीदे लगा बैठता हूँ, और ग़लत भी क्या है उमीदे लगाने में,  उमीद भी तो सिर्फ़ थोड़ी सी प्यार जताने और तुमसे अपनेपन की है ना प्यार तो दूर की बात है | अब शायद प्यार से बात भी नहीं करती प्यार की बात तो दूर, कद्र ही कर लेती,  मेरी ना सही तो मेरे प्यार की ही प्यार की भी ना सही तो उस एहसास की जिसमें मै दुनिया का सबसे परफेक्ट बंदा था, जिसने तुम्हारे लिए प्यार के अलग हे मायने सेट किए थे, ख़ैर सब वक़्त वक़्त की बात ह...

नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम पोएट्री जॉन एलिया साहब ।।

 नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम, बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम । ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी, कोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम । ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैं, वफ़ा-दारी का दावा क्यूँ करें हम । हमारी ही तमन्ना क्यूँ करो तुम, तुम्हारी ही तमन्ना क्यूँ करें हम । किया था अह्द जब लम्हों में हम ने, तो सारी उम्र ईफ़ा क्यूँ करें हम । उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीज़ें, फ़क़त कमरों में टहला क्यों करें हम । नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी, तो फिर दुनिया की परवाह क्यूँ करें हम ।।

मुन्नवर राना की शायरी :- माँ की ममता पर कुछ अनमोल शेर

  मुन्नवर राना साहब की सबसे मशहूर पहचान उनकी “माँ” पर लिखी शायरी है। यहाँ उनके कुछ चुनिंदा बेहतरीन शेर सिर्फ़ माँ पर: 1. “माँ ऐसी होती है कि भूखी रहकर भी, बच्चों को खिलाकर सो जाती है।” 2. “माँ की मोहब्बत से बढ़कर दुनिया में, कोई दौलत नहीं, कोई जन्नत नहीं।” 3. “घर के दरवाज़े को ताले लगाना कैसा, माँ अभी जाग रही है मुझे आने तक।” 4. “माँ बाप के आँचल को कभी मैला न करना, जन्नत यही है और कहीं ढूँढनी नहीं है।” 5. “माँ तेरी मोहब्बत में फ़र्क़ नहीं आता, नमाज़ छोड़ दूँ तो भी तू दुआ देती है।” 6. “बचपन में मेरे ग़म को मिटाने वाली, आज भी मेरी माँ ही है मुस्कुराने वाली।” 7. “माँ की दुआएँ यूँ ही साथ रहती हैं, घर से दूर जाऊँ तो परछाईं बन जाती हैं।” 8. “माँ के होने से घर स्वर्ग बन जाता है, वरना दीवारें ही तो दीवारें होती हैं।” 9. “माँ की ममता कभी बूढ़ी नहीं होती, उसकी गोदी में आज भी सुकून मिलता है।” 10. “माँ को दुआएँ जब भी याद आती हैं, दिल से बोझ और ग़म उतर जाते हैं।”

मुन्नवर राना की शायरी

  1. “उसके दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा, वो शख़्स अकेला ही भला लगता है।” 2. “मैंने रोते हुए पोछे थे किसी दिन आँसू, लंबे अरसे से वो तक़िया भी भिगोता होगा।” 3. “माँ के होते हुए सोचता हूँ ये अक्सर, फिर भी क्यों माँगने जाता है फ़क़ीरों जैसा।” 4. “ये सोचकर ही कर ली तेरे ग़म ने मेरी मदद, वरना मुझे रुलाने का इरादा तेरा न था।” 5. “घर के दरवाज़े को ताले लगाना कैसा, माँ अभी जाग रही है मुझे आने तक।” 6. “तेरी चौखट से चला था तो मैंने ये जाना, मेरे घर लौटने का रास्ता भी तू ही है।” 7. “माँ के क़दमों को चूम लूँ तो सुकून मिलता है, वरना सजदे में सर झुकाना तो आसान है।” 8. “माँ बाप के आँचल को कभी मैला न करना, जन्नत यही है और कहीं ढूँढनी नहीं है।” 9. “ये हवाएँ हमें डराती क्यों हैं, तू नहीं है तो तन्हाई क्यों है।” 10. “माँ की आँखों में मोहब्बत का जो समंदर है, वो कभी कम नहीं होता, चाहे जितना रो लो।”

वो आख़िरी ख़त, जो दिल से लिखा, मिलन अधूरा, प्यार पूरा |

  मेरी प्यारी, ये अल्फ़ाज़ मैं काँपते हाथों और भारी दिल से लिख रहा हूँ। शायद तू इन्हें पढ़े, और मेरी धड़कनों को महसूस करे। तू मेरी ज़िंदगी की सबसे हसीन हक़ीक़त थी, और अब तू मेरी सबसे गहरी याद बनने वाली है। छोटी-सी काया, पर सपनों में बड़ी, तेरी हँसी में ही थी मेरी ज़िंदगी खड़ी। तेरी बड़ी-बड़ी आँखें… उनमें एक पूरा आसमान था, और मैं उसमें खोकर अपनी दुनिया ढूँढ लेता था। तेरी बातूनी आदतें, तेरी ज़िद, सब कुछ मुझे परेशान भी करते थे और वही सब मुझसे सबसे ज़्यादा मोहब्बत भी करवाते थे। तेरा हँसते-हँसते अचानक रो जाना, दिल को तोड़कर फिर से जोड़ जाना। तू कहती थी,  “मैं तुझे खोना नहीं चाहती” , और मेरा दिल भी यही चिल्लाता था। पर तक़दीर के आगे हम दोनों मजबूर हैं। तेरा जाना तय है, और मेरा रुक जाना भी तय है। काश वक्त को थाम लेता मैं अपनी हथेली में, तो तुझे खोने का डर न होता इस दिल की झोली में। तेरी शादी के दिन, जब तू दुल्हन बनकर सजेगी… मैं दूर से ही तुझे अपनी दुआओं में सजाऊँगा। सबकी नज़रें तुझ पर ठहरेंगी, पर मेरी नज़र तुझे ढूँढेगी तेरे नए घर में, तेरी नई दुनिया में। तेरी हर ख़ुशी मेरी आख़िरी तमन्...